यहाँ यह भी समझ लेना चाहिए की घुटना प्रत्यारोपण करवाना ही है तो सबसे पहले आपको जहाँ ज्वाइंट रिप्लेसमेंट होते हो उसका चयन करना चाहिए क्योंकि इन विशिष्ट अस्पतालों में सारा स्टाफ स्पेशल होता है यानि सभी अपने काम में विशेषज्ञ होते हैं , क्योंकि घुटना प्रत्यारोपण उच्च परिशुधता / सटीकता की मांग करती है और हॉस्पिटल में इसकी कमी होती है |
पिछले विगत वर्षो में हमारे सामने कई ऐसे मरीज आये है जो कि जानकारी के अभाव में जनरल हॉस्पिटल में सर्जरी / प्रत्यारोपण करवाया और उनकी हमे दोबारा सर्जरी तक करनी पढ़ी | दोबारा सर्जरी के कारणों में सबसे प्रमुख है – इन्फेक्शन , पैर मोड़ने में समस्या आदि |
अस्पताल के चयन के पश्चात् डॉक्टरों का चयन भी उतना जरुरी है क्योंकि हमने आपको पहले ही बता दिया है कि घुटना प्रत्यारोपण उच्च परिशुधता / सटीकता मांगती है और आज की जो विशेष पद्दति है काफी हद तक वो भी जिम्मेदार है | आज भारत में कई ऐसे मेडिकल कॉलेज है जहाँ से एम. एस. की डिग्री प्राप्त करने के बाद सर्जन घुटना प्रत्यारोपण कर रहे हैं और उनको प्रत्यारोपण \ सर्जरी का कोई अनुभव नहीं होता है | कारण इन मेडिकल कॉलेज में इस तरह की सर्जरी होती ही नहीं है |
कई बार देखा गया है कि ऑपरेशन के पश्चात् मरीज सही से चल नहीं पाता है और घुटनों को मोड़ने में भी काफी समस्या होती है | घुटना प्रत्यारोपण में ऐसी प्रमुख तीन बातो, जिनका ध्यान रखना होता है और ठीक से ना होने की वजह से सर्जरी के फेल होने की सम्भावना रहती है | तीनो मुख्य कारण क्रमशः :
1 . माल एलाइनमेंट (गलत संरेखण ) – ये कह सकते है की इम्प्लांट का अपनी सही एक्सिस ना दे पाना, जिस वजह से प्रत्यारोपित इम्प्लांट फेल हो जाता है|
2 . लिगामेंट बैलेंसिंग – यहाँ आपको ये जान लेना जरुरी है कि घुटने की गठिया जिस व्यक्ति को होती है उसमे दो प्रकार की विकृति पाई जाती है , वैरस (varus) और वैलगस (valgus), इसमें सर्जन को ये निर्णय लेना होता है कि मीडियल साइड का लिगामेंट या लेटरल साइड का लिगामेंट में से किसको रिलीज़ करना है | ये भी बहुत सटीकता मापता है और अगर सर्जन ने इसकी अनदेखी की तो सर्जरी फेल हो सकती है |
3 . सॉफ्ट टिश्यू बैलेंसिंग (कोनल ऊतक संतुलन ) – तीसरा और जो बहुत ही महत्वपूर्ण है , वह यह है कि अति सुक्ष्म ऊतक जो ज्वोइंट कैप्सूल के अन्दर होते है उनको कई बार सर्जन निकाल देते है जिनकी वजह से घुटना बहुत कड़ा (स्टिफ) हो जाता है|
आज आप जिसे देखे वो ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन है, ऐसी स्थिति काफी भ्रामक होती है और इसी वजह से कई बार मरीजो को मुसीबत का सामना करना पढ़ता है |
अगर आप डॉक्टर का चयन कर रहे है तो आप सबसे पहले ये जान ले कि सर्जन को कितना अनुभव है, वो रोज सर्जरी करते है अथवा नहीं और सबसे महत्वपूर्ण सर्जन कौन सी सर्जिकल तकनीक उपयोग में लाते है | यहाँ यह बता देना जरुरी है कि पूरे भारत में जो सबसे सटीक सर्जिकल तकनीक है उसको जीरो एरर तकनीक के नाम से जाना जाता है |
इस जीरो एरर (Zero Error) तकनीक की खासियत यह है कि इस विधि से सर्जरी के पश्चात् मरीज पूर्णतया प्राकृतिक घुटनों का एहसास पाते है जैसे पालथी मारना , उकडू बैठना , नमाज़ पढ़ना इत्यादि |